सत्पंथ, सनातन धर्म छे मनु महाराजे मनु स्मृति मा अध्याय चार(४) श्लोक एक सो शणत्रिस, एक सो एणत्रिस (१३७,१३८)सनातन धर्म नु स्वरूप मा कह्यु छे
सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रुयात्सत्यमप्रियम I
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्म: सनातन: II१३७IIसत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न ब्रुयात्सत्यमप्रियम I
भद्रं भद्रंमिति ब्रुयाभ्दद्रमित्येव वा वदेत I
सुष्कवैरं विवादं च न कुर्यात्केन चित्सहII१३८II
सत्य वदवु अने ते य प्रिय बोलवू ,पण अप्रिय लागे तेवु सत्य वदवु नहीं; तेम ज प्रिय एवू असत्य बोलवू नहीं, आ ज सनातन धर्म छे. (१३८) भद्र नहीं होय तेने पण ढीक ज कहवु अने भद्र होय तेने तो भद्र ज कहवाय, पण कोएनी साथे कदी पण खाली वैर के वादविवाद करवा नहीं (१३९) आपडा इस्टदेव सदगुरु श्री इमामशाह महाराज नी (१००नियम नी) सिक्षा पत्री मा कह्यु छे "सते चालवू रात ने दिवस, तेमा साचुं बोलवू निश्चे"(२९) कोइ केनी न करसो निंदा , जइ गतमां ने कहो हेजंदा (नमस्कार). (३) मीठे वचने बोलो वीरा, तम मुखे तो जल्के हिरा (१३) साचो जुठो नव करसो वाद, जुओ जुग्टानो न करसो स्वाद. (६५)
मनु स्मृति ना श्लोक १३८ मा सनातन धर्म ना स्वरूप मा सत्य वदवु अने प्रिय बोलवा नु कहयु छे अने सदगोर नी सिक्षा पत्री मा पण सते चालवू अने कोइ नी निंदा ना करवा नु कह्यु छे .
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें